🌹🌹 ग़ज़ल 🌹🌹
अश्क बहे जो मेरे तो कोई गम न था।
आसमां के अश्कों ने भी मेरा आंगन धो डाला,
उसके आने के दीदार में।
ये तो मुझे लगा कि मैं रोया था।
ए पागल तू क्या ख़ाक रोया था।
तेरे गुमान को आज आसमां ने यूं धो डाला।
अश्क बहे जो मेरे तो कोई गम न था।
फितरत तेरी पता चली आज तुझे।
इतना क्यूं इतराता है आज,
ये आसमां ने यूं धो डाला।
अश्क बहे जो मेरे तो कोई गम न था।
आसमां के अश्कों ने भी मेरा आंगन धो डाला।
हवाएं आज यूं हुई सर्द, कि
मन की गर्मी को यूं धो डाला।
अब तो हवाओं ने भी आकर मुझे यूं धो डाला।
अश्क बहे जो मेरे तो कोई गम न था।
हवाओं ने भी जताया मेरी फितरत क्या है।
अब तो यूं लगता है, कि
फिजाओं ने भी जताया है, मेरी फितरत क्या है।
सबने मिलकर मेरे मन को यूं धो डाला।
अब तो यूं लगता है कि
मैं तेरा हो डाला
हवाओं, फिजाओं और आसमां ने
मुझे तेरा कर डाला
अब तो यूं लगता है, कि
अश्क बहे जो मेरे तो कोई गम न था।
अश्क बहे जो मेरे तो कोई गम न था।
बहुत खूब,बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteवाह
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 19 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐
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